इस सीमान्त से उस आख़री छोर तक
हैं असंख्य आलोक पुञ्ज, पूरा
शहर ओढ़े बैठा है रंगीन
विज्ञापन, इस हाथ
से उस हाथ
बदल
रहे
हैं रहस्यनील घटनाचक्र, क्रय विक्रय
के नीचे हैं बिंदु बिंदु जीवन यापन,
पूरा शहर ओढ़े बैठा है रंगीन
विज्ञापन। हर एक मोड़
से जुड़े हैं, न जाने
कितने ही
गली
कूचे, जन अरण्य के इस महा कलरव
में गुम हैं अनगिनत प्रतिध्वनियां,
किसे फ़ुरसत है यहाँ, कौन
किस के लिए सोचे,
क्या नगरपाल
और क्या
नागर,
सभी मिलेंगे अनावृत, जब कभी उठे -
झूठ का आवरण, पूरा शहर ओढ़े
बैठा है रंगीन विज्ञापन।
ये सभी हैं पारद
झरे आईने,
कहने
को
प्रजातंत्र के चौथे स्तम्भ, शायद वही
बताएं क्या हैं इनके मायने, हर
तरफ है मिथ्या जयगान,
कूप मंडूक बनाए
रखने का
सतत
अभियान, घिसे पिटे हलफ़नामे पर
एक नया मोहर, आश्वासन के
बाद आश्वासन, पूरा शहर
ओढ़े बैठा है रंगीन
विज्ञापन।
* *
- - शांतनु सान्याल
10 अगस्त, 2021
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा बुधवार (11-08-2021 ) को 'जलवायु परिवर्तन की चिंताजनक ख़बर' (चर्चा अंक 4143) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंअभियान, घिसे पिटे हलफ़नामे पर
जवाब देंहटाएंएक नया मोहर, आश्वासन के
बाद आश्वासन, पूरा शहर
ओढ़े बैठा है रंगीन
विज्ञापन।
बहुत सुंदर सर,सादर नमन
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसटीक कटाक्ष।
जवाब देंहटाएंप्रजातंत्र के चौथे स्तम्भ, शायद वही
बताएं क्या हैं इनके मायने..वाह!लाजवाब 👌
सादर नमस्कार सर।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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