कभी एहसास करो ख़ुद के अंदर, कि
तुम हो एक मासूम चेहरा, मंदिर
की सीढ़ियों पर चुपचाप खड़ा
हुआ, तुम महसूस करो
अपने भीतर, कि
तुम चाहते
हो बंद
हथेलियों में कच्चे नारियल का एक -
छोटा सा फांक, और कुछ नकुल -
दाने, कभी अनुभव करो कि
नींद से पहले एक झटका
तुम्हें चमत्कृत कर
जाए, और वो
प्रसाद जो
तुम्हारे
हाथ में था फ़र्श पर दूर तक बिखर -
जाए, कदाचित उन्हें खोज कर
अपने ही कपड़ों से धूल
झाड़ कर तुम उन्हें
हलक़ से नीचे
उतार लो,
तब
तुम्हें स्पष्ट दिखाई दे जाएंगे जीवन
के सही माने, तुम महसूस करो
अपने भीतर, कि तुम चाहते
हो बंद हथेलियों में
कच्चे नारियल
का एक
छोटा
सा फांक, और कुछ नकुल - दाने। - -
* *
- - शांतनु सान्याल
05 अगस्त, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
वो
जवाब देंहटाएंप्रसाद जो
तुम्हारे
हाथ में था फ़र्श पर दूर तक बिखर -
जाए, कदाचित उन्हें खोज कर
अपने ही कपड़ों से धूल
झाड़ कर तुम उन्हें
हलक़ से नीचे
उतार लो,
सही कहा कभी महसूस भी कर पाये ये बातें और ऐसी जरूरतें तो समझ आये जरूरतमन्द लोगों की मजबूरी
बहुत ही सुंदर सृजन।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा संदेश देती बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंवाह...जीवन दर्शन पर सटीक कविता...। जीवन भी यहीं कहीं होता है जहां हमारे विचारों का प्रवाह होता है...। गहन रचना...। खूब बधाई
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंहृदय स्पर्शी भाव!!
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं