03 अगस्त, 2021

अतल से धरातल का सफ़र - -

रात के सीने में छुपे रहते हैं अनगिनत
अंध गह्वर, दूर तक रहता है गहन
अंधेरा, ज़िन्दगी उतरती है
धुंध की सीढ़ियों से
क्रमशः नीचे
बहोत -
नीचे की ओर जहाँ निमग्न कहीं बैठा
होता है सहमा सा एक बूंद सवेरा,
दूर तक रहता है गहन अंधेरा।
इस एक बूंद में है कहीं
समाहित, युगों का
अग्रदूत जो
कहता
है आगे बढ़ो, मुझे छूने की कोशिश तो
करो, तुम्हें कोई नहीं है यहाँ रोकने
वाला, नीलाभ जुगनुओं में
बसता है क्षितिज पार
का उजाला, रात
ढलती है
रोज़
की तरह छोड़ जाती है, उन्मुक्त सीने
पर कुछ शिशिर बिंदु, सीप की
अधखुली आँख से झांकता
है सुदूर जीवन नदी
का किनारा,
दूर तक
पसरा हुआ है, नरम धूप का डेरा, रात
के सीने में छुपे रहते हैं अनगिनत
अंध गह्वर, दूर तक रहता
है गहन अंधेरा।
* *
- - शांतनु सान्याल
 

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(०४-०८-२०२१) को
    'कैसे बचे यहाँ गौरय्या!'(चर्चा अंक-४१४६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. ज़िन्दगी उतरती है
    धुंध की सीढ़ियों से
    क्रमशः नीचे
    बहोत -
    नीचे की ओर जहाँ निमग्न कहीं बैठा
    होता है सहमा सा एक बूंद सवेरा, और वो बूंद सवेरा ही जीवन के हर अंधकार को भगाने का मार्ग दिखाता है,बहुत ही सारगर्भित रचना ।

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