31 अगस्त, 2021

चकमक पत्थरों की भाषा - -

शब्दहीन ओंठों पर चिपके हुए हैं मुद्दतों से,
ख़्वाबों के ख़ूबसूरत चुम्बन, आईने
की हंसी में है व्यंग्य मिलित
कोई महिमा कीर्तन,
कौन किसे है
छलता
हैं
यहां, दरअसल हर चेहरे पर लगा होता है
और एक चेहरा, एकांत पलों में जो
घूरता है अरगनी से नग्न देह
का परावर्तन, आईने की
हंसी में है व्यंग्य
मिलित कोई
महिमा
कीर्तन। पत्थरों से है हमें प्रणय अभिलाष,
हम तराशते हैं उन्हें अपनी आदिम
तृष्णा मिटाने के लिए, रचते
हैं नित नए प्रयोग, छेनी
हथौड़ों से गढ़ते हैं
उसका बदन
ख़ुद की
ख़ुशी
पाने के लिए, भूल जाते हैं कि भाषाहीन
पत्थरों में है अदृश्य आग, जो कर
सकती है सोने का लंका दहन,
आईने की हंसी में है
व्यंग्य मिलित
कोई महिमा
कीर्तन।
* *
- - शांतनु सान्याल

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 31 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुदर रचना शांतनु जी, बहुत ही खूब---क‍ि
    हम तराशते हैं उन्हें अपनी आदिम
    तृष्णा मिटाने के लिए, रचते
    हैं नित नए प्रयोग, छेनी
    हथौड़ों से गढ़ते हैं
    उसका बदन
    ख़ुद की
    ख़ुशी
    पाने के लिए---वाह

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब | कृष्णजन्माष्टमी की शुभकामनायें

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  4. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-09-2021) को चर्चा मंच   "ज्ञान परंपरा का हिस्सा बने संस्कृत"  (चर्चा अंक- 4174)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 1 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

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  6. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन सर

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