28 अगस्त, 2021

अन्तःस्थल में कहीं - -

सजल नयन में है ग्रह नक्षत्रों का
आना जाना, पलकों के तीर
कहीं बसता है सपनों
का नगर, एक
बूंद की
सतह पर है ज़िंदगी का ठिकाना,
सजल नयन में है ग्रह नक्षत्रों
का आना जाना। तुम्हारी
रहस्यमयी, स्मित
में हैं बहमान
जुगनुओं
के
द्वीप, विस्तृत आलोक उत्सवों
का देश, जो पा जाएं उसे तो
उभर जाएं हम सुख दुःख
के तिर्यक जालों से,
वो क़रीब हो
कर भी
है
बहुत अनजाना, सजल नयन
में है ग्रह नक्षत्रों का
आना जाना।
* *
- - शांतनु सान्याल
 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 29 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. गहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर।
    प्रणाम
    सादर।

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