सजल नयन में है ग्रह नक्षत्रों का
आना जाना, पलकों के तीर
कहीं बसता है सपनों
का नगर, एक
बूंद की
सतह पर है ज़िंदगी का ठिकाना,
सजल नयन में है ग्रह नक्षत्रों
का आना जाना। तुम्हारी
रहस्यमयी, स्मित
में हैं बहमान
जुगनुओं
के
द्वीप, विस्तृत आलोक उत्सवों
का देश, जो पा जाएं उसे तो
उभर जाएं हम सुख दुःख
के तिर्यक जालों से,
वो क़रीब हो
कर भी
है
बहुत अनजाना, सजल नयन
में है ग्रह नक्षत्रों का
आना जाना।
* *
- - शांतनु सान्याल
28 अगस्त, 2021
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 29 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना.
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंगहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
सादर।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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