16 अगस्त, 2021

मंज़िल दर मंज़िल - -

यहीं ख़त्म नहीं होते तमाम
रास्ते, इस के आगे भी
हैं गंतव्य ढेर सारे,
बा' इस-ए-
तस्कीं
जो
भी हो, साझा दर्द हैं हमारे
तुम्हारे, तुम तोड़े गए
संग ए मुजस्मा हो,
किसी उजड़े
हुए
महल ए इबादत के, तो
क्या हुआ, संवरते
बिगड़ते रहते
हैं ज़िन्दगी
के
सितारे, जो उम्र भर करता
रहा भविष्यवाणी दूसरों
के लिए, ख़ुद से था
अनजान
बहोत,
डूबा
ले गई उसे उथली नदी
किनारे किनारे,
हमल ए
सुबह
में
छुपा है क्या कोई बता
सकता नहीं, रस्म
ए दुनिया का
कारोबार
अपनी
जगह है रवां, कोई जीते या
कोई हारे - -
 * *
- - शांतनु सान्याल  

 

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