किसी दिन, फिर पूछेंगे, उदासी का सबब
आज बसने भी दो ज़िन्दगी को ;
नज़दीकियों के आसपास,
वो सवाल जो कर
जाये दिल
की
गहराइयों में उथल पुथल, घिर आएं बेवक़्त
ही निगाहों में बदलियाँ, नहीं चाहिए
वो दर्द भरी बरसात, मखमली
शाम के साए, और उभर
चले हैं ख़्वाब नए !
खिलने दें
फिर
क्यों नहीं मुरझाये शबे गुल, भरने दें इक -
अह्सासे ख़ुश्बू ; कि मुख़्तसर है ये
रात ; और अरमानों की
फेहरिस्त बहोत
लम्बी - - -
- शांतनु सान्याल
आज बसने भी दो ज़िन्दगी को ;
नज़दीकियों के आसपास,
वो सवाल जो कर
जाये दिल
की
गहराइयों में उथल पुथल, घिर आएं बेवक़्त
ही निगाहों में बदलियाँ, नहीं चाहिए
वो दर्द भरी बरसात, मखमली
शाम के साए, और उभर
चले हैं ख़्वाब नए !
खिलने दें
फिर
क्यों नहीं मुरझाये शबे गुल, भरने दें इक -
अह्सासे ख़ुश्बू ; कि मुख़्तसर है ये
रात ; और अरमानों की
फेहरिस्त बहोत
लम्बी - - -
- शांतनु सान्याल
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