अनहद संवेदना
उसका अस्तित्व एक मौन साधक की तरह,
अदृश्य, लेकिन है शामिल हर साँस में,
ज्यों मरुभूमि में अप्रत्याशित
वृष्टि भिगो जाय तप्त
संध्या, लिख जाय
कोई उम्मीद
की
रुबाई, खंडहरों में फैलती वन बेलियों की तरह, है
वो अंतर्मन की गहराइयों में छुपा, कोई
गुमनाम कवि की तरह, अनहद
उसकी भावना, हर पल
जगाये उपासना,
अलौकिक
हो कर
भी वो है विद्यमान प्राकृत, किसी साधारण से
इन्सान की तरह - - -
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