शेष पहर जब झर जाएँ निशिपुष्प और
चाँद हो चले मद्धिम तुम पाओगे
उसे दिगंत में कहीं, तुम्हारे
हिस्से का उजाला है
है अपनी जगह
मौजूद।
जीवन स्रोत अविरल बहता जाए, न
आदि, न कोई अंत, निःश्वास के
डोरों से नित नए स्वप्न सजाए,
नियति ही जाने क्या है
उसमें, अंत या
उत्स,लेकिन
ये सच है
तुम्हारे हिस्से का प्याला है अपनी
जगह मौजूद।
* *
- शांतनु सान्याल
चाँद हो चले मद्धिम तुम पाओगे
उसे दिगंत में कहीं, तुम्हारे
हिस्से का उजाला है
है अपनी जगह
मौजूद।
जीवन स्रोत अविरल बहता जाए, न
आदि, न कोई अंत, निःश्वास के
डोरों से नित नए स्वप्न सजाए,
नियति ही जाने क्या है
उसमें, अंत या
उत्स,लेकिन
ये सच है
तुम्हारे हिस्से का प्याला है अपनी
जगह मौजूद।
* *
- शांतनु सान्याल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-02-2019) को "अपने घर में सम्भल कर रहिए" (चर्चा अंक-3259) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
असंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कुछ बड़ा हो ही गया : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
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