हाशिए के लोग हमेशा की तरह हैं गुमशुदा,
अपनी अलग दुनिया में, वो आज भी
हैं बंजारे ऊँची इमारतों के नीचे,
न जाने कौन अलसुबह,
फिर ख़्वाबों के
इश्तहार
लगा गया, फिर मासूम मेरा दिल दौड़ चला
है, दिलफ़रेब, चाहतों के पीछे। क़ातिल
है, या मसीहा, ख़ुदा बेहतर जाने,
सुना है कोई जादू है, उसके
लच्छेदार बातों के
पीछे। चलो
फिर
तुम्हारे वादों पे यक़ीन कर लें, ज़िन्दगी को
कुछ पल ही सही आराम मिले, दवा है
या सुस्त ज़हर किसे ख़बर उन
नाम निहाद राहतों के
पीछे। वो आज भी
हैं बंजारे ऊँची
इमारतों के
नीचे।
* *
- शांतनु सान्याल
अपनी अलग दुनिया में, वो आज भी
हैं बंजारे ऊँची इमारतों के नीचे,
न जाने कौन अलसुबह,
फिर ख़्वाबों के
इश्तहार
लगा गया, फिर मासूम मेरा दिल दौड़ चला
है, दिलफ़रेब, चाहतों के पीछे। क़ातिल
है, या मसीहा, ख़ुदा बेहतर जाने,
सुना है कोई जादू है, उसके
लच्छेदार बातों के
पीछे। चलो
फिर
तुम्हारे वादों पे यक़ीन कर लें, ज़िन्दगी को
कुछ पल ही सही आराम मिले, दवा है
या सुस्त ज़हर किसे ख़बर उन
नाम निहाद राहतों के
पीछे। वो आज भी
हैं बंजारे ऊँची
इमारतों के
नीचे।
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- शांतनु सान्याल
,बहुत खूब ...होली की हार्दिक शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
हटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
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