उस चतुष्कोण से निकलना इतना नहीं सरल,
हर एक मिलन बिंदु से निकलते हैं न
जाने कितने प्रतिबिंब, न कोई
बही खाता, न ही कुछ वहाँ
लिपिबद्ध, उस प्रश्न
का मुश्किल है
खोजना
हल, उस चतुष्कोण से निकलना इतना नहीं -
सरल। अनुप्रवाह के सभी सहचर, लेकिन
विपरीत स्रोत में एकाकी जीवन, न
कोई माझी, न कोई प्रकाश -
स्तम्भ, बहता जाए
अस्तित्व मेरा
स्वतः
अविरल, उस चतुष्कोण से निकलना इतना नहीं
सरल। उस पुरातन सत्य के नेपथ्य में नव
पल्लव खोजें नवीन प्राण वायु, यद्यपि
इस मायावी जगत में कोई नहीं
चिरायु, हर एक पग पर हैं
विद्यमान कोई न कोई
प्रतिस्थापन, रिक्त
स्थानों का होता
रहता है यूँ
ही अदल-बदल, उस चतुष्कोण से निकलना इतना
नहीं सरल।
* *
- शांतनु सान्याल
हर एक मिलन बिंदु से निकलते हैं न
जाने कितने प्रतिबिंब, न कोई
बही खाता, न ही कुछ वहाँ
लिपिबद्ध, उस प्रश्न
का मुश्किल है
खोजना
हल, उस चतुष्कोण से निकलना इतना नहीं -
सरल। अनुप्रवाह के सभी सहचर, लेकिन
विपरीत स्रोत में एकाकी जीवन, न
कोई माझी, न कोई प्रकाश -
स्तम्भ, बहता जाए
अस्तित्व मेरा
स्वतः
अविरल, उस चतुष्कोण से निकलना इतना नहीं
सरल। उस पुरातन सत्य के नेपथ्य में नव
पल्लव खोजें नवीन प्राण वायु, यद्यपि
इस मायावी जगत में कोई नहीं
चिरायु, हर एक पग पर हैं
विद्यमान कोई न कोई
प्रतिस्थापन, रिक्त
स्थानों का होता
रहता है यूँ
ही अदल-बदल, उस चतुष्कोण से निकलना इतना
नहीं सरल।
* *
- शांतनु सान्याल
असंख्य धन्यवाद आदरणीय मित्र - - नमन सह।
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