वो नज़दीकियाँ इक अहसास ए राहत थीं,
जैसे शाम की बारिश के बाद, ज़रा
सी ज़िन्दगी मिले कहीं तपते
रेगिस्तां को अचानक,
मुरझाए गुल को
जैसे क़रार
आए
आधी रात के बाद, कि दिल की परतों पे
गिरे ओस, बूंद बूंद, वो तेरा इश्क़
था, या इब्तलाह रस्मी, जो
भी हो, उन निगाहों में
हमने दोनों जहां
पा लिया,
अब
किसे है ग़ैर हक़ीक़ी ख्वाहिश, उन लम्हों
में हमने जाना ज़िन्दगी की बेशुमार
ख़ूबसूरती, उन लम्हों में हमने
छोड़ दी वो तमाम उलझे
हुए, फ़लसफ़ा ए
दीन दुनिया !
* *
- शांतनु सान्याल
जैसे शाम की बारिश के बाद, ज़रा
सी ज़िन्दगी मिले कहीं तपते
रेगिस्तां को अचानक,
मुरझाए गुल को
जैसे क़रार
आए
आधी रात के बाद, कि दिल की परतों पे
गिरे ओस, बूंद बूंद, वो तेरा इश्क़
था, या इब्तलाह रस्मी, जो
भी हो, उन निगाहों में
हमने दोनों जहां
पा लिया,
अब
किसे है ग़ैर हक़ीक़ी ख्वाहिश, उन लम्हों
में हमने जाना ज़िन्दगी की बेशुमार
ख़ूबसूरती, उन लम्हों में हमने
छोड़ दी वो तमाम उलझे
हुए, फ़लसफ़ा ए
दीन दुनिया !
* *
- शांतनु सान्याल
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