ओस की बूंदें थीं या झरे तमाम रात,
ख़मोश निगाहों से दर्द लबरेज़
जज़्बात ! सीने के बहोत
क़रीब हो के भी
कोई, न
छू सका मेरे दिल की बात, बहोत -
चाहा कि कह दूँ , सबब इस
दीवानगी का, लेकिन
तक़ाज़ा ए
इश्क़
और सर्द दहन, हमने ख़ुद ब ख़ुद -
जैसे क़ुबूल किया, अब हश्र
जो भी हो, हमने तो
ज़िन्दगी को
नाज़ुक
मोड़ पे ला, मौज क़िस्मत के यूँ ही
भरोसे छोड़ दिया, वो खड़े
हों गोया, टूटते किनारों
पे रूह मंज़िल की
मानिंद,
कि मंझधार हमने जिस्म ओ जां !
जान बूझ के यूँ क़ुर्बान किया।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
Beautiful-Lotus-Oil-Paintings-by-Jiang-Debin
ख़मोश निगाहों से दर्द लबरेज़
जज़्बात ! सीने के बहोत
क़रीब हो के भी
कोई, न
छू सका मेरे दिल की बात, बहोत -
चाहा कि कह दूँ , सबब इस
दीवानगी का, लेकिन
तक़ाज़ा ए
इश्क़
और सर्द दहन, हमने ख़ुद ब ख़ुद -
जैसे क़ुबूल किया, अब हश्र
जो भी हो, हमने तो
ज़िन्दगी को
नाज़ुक
मोड़ पे ला, मौज क़िस्मत के यूँ ही
भरोसे छोड़ दिया, वो खड़े
हों गोया, टूटते किनारों
पे रूह मंज़िल की
मानिंद,
कि मंझधार हमने जिस्म ओ जां !
जान बूझ के यूँ क़ुर्बान किया।
* *
- शांतनु सान्याल
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