11 दिसंबर, 2013

तमाम रात - -

हर सिम्त गोया धुंध के बादल और
ज़िन्दगी दूर, डूबती वादी की
तरह नज़र आई, तेरे
लौट जाने के
बाद,
तमाम रात, हर तरफ छायी रही -
इक अंतहीन तन्हाई, न ही
चाँद, न सितारे, न ही
गुल ए शबाना दे
पाए, हमें
इक
पल राहत ए हयात, जिस्म ओ जां
जलते रहे ख़ामोश, दम ब दम
तेरे लौट जाने के बाद,
तमाम रात ! तू
था कोई रूह -
मसीहा
या -
कोई ख़ूबसूरत क़ातिल नज़र, न -
कोई धुआं सा उठा जिगर
से, न बहे निगाहों से
क़तरा अश्क,
फिर भी
बहोत
था
मुश्किल दर्द से उभरना, तेरे लौट
जाने बाद, तमाम रात,

* *
- शांतनु सान्याल  


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