23 दिसंबर, 2013

प्रणय अनुबंध - -

वास्तविकता जो भी हो स्वप्न टूटने के बाद,
बुरा क्या है, कुछ देर तो महके निशि -
पुष्प बिखरने से पहले, फिर
जागे चाँद पर जाने की
अभिलाषा, फिर
पुकारो तुम
मुझे
अपनी आँखों से ज़रा, अशेष गंतव्य हैं अभी
अंतरिक्ष के परे, उस नील प्रवाह में चलो
बह जाएँ कहीं शून्य की तरह, ये
रात लम्बी हो या बहोत
छोटी, कुछ भी
अंतर नहीं,
कोई
अनुराग तो जागे, जो कर जाए देह प्राण को
अंतहीन सुरभित, अनंतकालीन प्रणय
अनुबंध की तरह - -

* *
- शांतनु सान्याल





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