09 दिसंबर, 2013

कोई शिकायत नहीं - -

फिर अंधेरों से निकल कर देखा है, तुझे
ऐ ज़िन्दगी इक नए अंदाज़ से,
किसी का यक़ीं कहाँ तक
मुमकिन, हमसाया
भी गुज़र जाए
कई बार,
अजनबी की तरह बहोत नज़दीक, यूँही
आसपास से, फिर भी ज़िन्दगी को
है हर हाल में चलते जाना,
इसी अंतहीन सफ़र
में हैं कहीं
सायादार दरख़्त, और कहीं उभरते ठूँठ
भी, कहीं फूलों की पगडंडियां तो
कहीं बिखरे हुए अनजाने
काँटों भरे रास्ते,
कभी तेरी
मुहोब्बत ले जाए मुझे रौशनी के बहाव
में, कभी तू रख जाए मुझे यूँ ही
ख़ारिज़ ए अहसास, किसी
उफनती नदी के
कटाव में,
फिर भी कोई शिकायत नहीं ए ज़िन्दगी
तुझसे - -

* *
- शांतनु सान्याल
 


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