आईने का शहर कोई, फिर भी तेरी महफ़िल
लगे बहोत फ़ीकी फ़ीकी, न कहीं कोई
उभरता अक्स देखा, न ही नूर
कोई तिलिस्म आमेज़,
हर चेहरे पे है इक
नक़ली परत,
या कोई
ख़त गुमनाम, हर निगाह गोया दर जुस्तजू -
ढूंढ़ती है ख़ुद का पता, इस मुखौटे के
हुजूम में न जाने क्यूँ, वजूद
भी अपना लगे कुछ
कुछ अजनबी,
ये जहां
है कैसी, न डुबाए पुरसुकून से, न हीं उभारे -
ये ज़िन्दगी ! उड़ते अभ्र हैं, या है तेरी
वो मुहोब्बत, मेरा दिल तलाशे
सायादार इक ज़मीं, न
हो जाएँ इस
चाह में
मेरी हसरतकुन आँखें, इक दिन बंजर कहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
chinese art 1
लगे बहोत फ़ीकी फ़ीकी, न कहीं कोई
उभरता अक्स देखा, न ही नूर
कोई तिलिस्म आमेज़,
हर चेहरे पे है इक
नक़ली परत,
या कोई
ख़त गुमनाम, हर निगाह गोया दर जुस्तजू -
ढूंढ़ती है ख़ुद का पता, इस मुखौटे के
हुजूम में न जाने क्यूँ, वजूद
भी अपना लगे कुछ
कुछ अजनबी,
ये जहां
है कैसी, न डुबाए पुरसुकून से, न हीं उभारे -
ये ज़िन्दगी ! उड़ते अभ्र हैं, या है तेरी
वो मुहोब्बत, मेरा दिल तलाशे
सायादार इक ज़मीं, न
हो जाएँ इस
चाह में
मेरी हसरतकुन आँखें, इक दिन बंजर कहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
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