11 दिसंबर, 2013

ख़ुली किताब की मानिंद - -

ख़ुली किताब की मानिंद, हमने अपना
वजूद रख दिया दर मुक़ाबिल
तुम्हारे, अब नुक़ता
नज़र की बात
है काश
बता देते तुम, क्या है फ़ैसला दिल में -
तुम्हारे, कोई भी मुकम्मल नहीं
इस जहान में, कुछ न कुछ
तो कमी रहती है,  
हर एक
इंसान में, न कर तलाश बेइंतहा ख़ुशी
के लिए, कि ये वो तितली है, जो
छूते ही उड़ जाए, पलक
झपकते, किसी
और ही
महकते गुलिस्तान में, न देख मुझे यूँ
हैरत भरी नज़र से, अभी तलक
तुमने तो पलटा ही नहीं,
एक भी सफ़ह्
ज़िन्दगी
का, सरसरी नज़र से न कर अन्दाज़ -
दिल की गहराइयों का - -

* *
- शांतनु सान्याल


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