12 दिसंबर, 2013

हद ए नज़र - -

हद ए नज़र से आगे, क्या है किसे ख़बर,
तू है मुख़ातिब जो मेरे, अब रूह ए
आसमानी से क्या लेना, न
है किसी मंज़िल की
तलाश, न ही
ख्वाहिश
अनबुझी, तेरी इक निगाह के आगे अब
नादीद मेहरबानी से क्या लेना, उठे
फिर न कहीं कोई तूफ़ान, इक
अजीब सी ख़ामोशी है -
ग़ालिब, मरकज़
ए शहर में,
अब जो
भी हो अंजाम, अब ज़माने की परेशानी
से क्या लेना - -

* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
The Legend of the Willow

8 टिप्‍पणियां:

  1. इक सर्दो- स्याह तारीक और सरहदें पहलु बदले..,
    शबे-गिर्द-ब-रौ को तिरी निगहबानी से क्या लेना.....

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    पोस्ट का लिंक कल सुबह 5 बजे ही खुलेगा।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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