इक तूफ़ान सा उठा कांपते साहिल में
कहीं, या किसी ने छुआ था दिल
मेरा क़ातिल निगाह से,
मंज़िल थी मेरे
सामने
और मैं भटकता रहा तमाम रात, न
जाने किस ने पुकारा था, मुझे
तिश्नगी भरी चाह से,
उस मुश्ताक़
नज़र
का असर था, या मैंने ली अपने आप
ही अहद ए दहन, न जाने क्यूँ
इक धुआं सा उठता रहा
लौटती हुई बहारों
के राह से,
थकन
भरी उन लम्हात में भी ऐ ज़िन्दगी -
देखा तुम्हें, यूँ ही मुस्कुराते,
सब कुछ लुटा कर
लापरवाह से,
किसी ने
छुआ था दिल मेरा क़ातिल निगाह से,
* *
- शांतनु सान्याल
कहीं, या किसी ने छुआ था दिल
मेरा क़ातिल निगाह से,
मंज़िल थी मेरे
सामने
और मैं भटकता रहा तमाम रात, न
जाने किस ने पुकारा था, मुझे
तिश्नगी भरी चाह से,
उस मुश्ताक़
नज़र
का असर था, या मैंने ली अपने आप
ही अहद ए दहन, न जाने क्यूँ
इक धुआं सा उठता रहा
लौटती हुई बहारों
के राह से,
थकन
भरी उन लम्हात में भी ऐ ज़िन्दगी -
देखा तुम्हें, यूँ ही मुस्कुराते,
सब कुछ लुटा कर
लापरवाह से,
किसी ने
छुआ था दिल मेरा क़ातिल निगाह से,
* *
- शांतनु सान्याल
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