उन निगाहों में कहीं, है इक पोशीदा दहन,
बारहा जलता है मेरा जिगर, बेशुमार
पिघलता है, मोम सा ज़ख़्मी
बदन, न जाने उसकी
हद ए ख्वाहिश
है क्या -
हर इक सांस में मेरी उभरती है उसकी - -
चाहत, उन पलकों के हरकत से
गिरती उठती है, मेरे दिल
की नाज़ुक धड़कन,
ख़ुदा जाने
क्या है उसके दिल में, कोई राज़े रज़ामंदी,
या ख़ामोश क़त्ल का इमकां, हर
लम्हा इक बेक़रारी, हर
वक़्त ज़िन्दगी पे
जैसे इक
ख़ौफ़ गरहन ! कभी वो रोशन अक्स तो -
कभी मैं, महज़ इक टूटा दरपन,
उन निगाहों में कहीं, है
इक पोशीदा
दहन,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
dreamy path
बारहा जलता है मेरा जिगर, बेशुमार
पिघलता है, मोम सा ज़ख़्मी
बदन, न जाने उसकी
हद ए ख्वाहिश
है क्या -
हर इक सांस में मेरी उभरती है उसकी - -
चाहत, उन पलकों के हरकत से
गिरती उठती है, मेरे दिल
की नाज़ुक धड़कन,
ख़ुदा जाने
क्या है उसके दिल में, कोई राज़े रज़ामंदी,
या ख़ामोश क़त्ल का इमकां, हर
लम्हा इक बेक़रारी, हर
वक़्त ज़िन्दगी पे
जैसे इक
ख़ौफ़ गरहन ! कभी वो रोशन अक्स तो -
कभी मैं, महज़ इक टूटा दरपन,
उन निगाहों में कहीं, है
इक पोशीदा
दहन,
* *
- शांतनु सान्याल
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