लहरों की हैं, शायद अपनी ही मजबूरियां,
कहाँ रहती हैं, किनारों से लग कर
हमेशा ! न कहो मुझसे, कि
तुम्हें है मुहोब्बत
बेपनाह,
मौसमी हवाओं का भरोसा क्या, पलक -
झपकते न उड़ा ले जाए बाम ए
हसरत कहीं, न मिलो
इस तरह कि
ज़िन्दगी
भूल जाए तफ़ावत, हक़ीक़त ओ ख्वाब
के दरमियां, अभी अभी तुमने
सिर्फ़ अहसास किया है
मुझको, कुछ
वक़्त -
और चाहिए अहसास ए बेक़रारी को, - -
अक़ीदा से ईमां तक पहुँचने
के लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by _mucci
कहाँ रहती हैं, किनारों से लग कर
हमेशा ! न कहो मुझसे, कि
तुम्हें है मुहोब्बत
बेपनाह,
मौसमी हवाओं का भरोसा क्या, पलक -
झपकते न उड़ा ले जाए बाम ए
हसरत कहीं, न मिलो
इस तरह कि
ज़िन्दगी
भूल जाए तफ़ावत, हक़ीक़त ओ ख्वाब
के दरमियां, अभी अभी तुमने
सिर्फ़ अहसास किया है
मुझको, कुछ
वक़्त -
और चाहिए अहसास ए बेक़रारी को, - -
अक़ीदा से ईमां तक पहुँचने
के लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
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