न जाने क्यूँ, आज भी इक पहेली सी है
तुम्हारी पलकों की परछाई, न
जाने क्यूँ आज भी, जी
चाहता है तुम्हें, यूँही
निष्पलक, बस
देखते रहें,
इक जलता चिराग़ तन्हा और सुदूर -
कोई दरगाह वीरान, न कोई
दरख़्त दूर दूर तक, न
ही पत्थरों में
लिखी
कोई भूली तहरीर,फिर भी न जाने क्यूँ,
ज़िन्दगी सिर्फ़ चाहती है, तुम्हारी
निगाहों में अपना पता
तलाश करना,
वो बूंदें !
जो कभी छलकी थीं पुरनम आँखों से -
तुम्हारे, उन्हीं बूंदों में आज तक
सिमटी सी है ज़िन्दगी
अपनी - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
daisies
तुम्हारी पलकों की परछाई, न
जाने क्यूँ आज भी, जी
चाहता है तुम्हें, यूँही
निष्पलक, बस
देखते रहें,
इक जलता चिराग़ तन्हा और सुदूर -
कोई दरगाह वीरान, न कोई
दरख़्त दूर दूर तक, न
ही पत्थरों में
लिखी
कोई भूली तहरीर,फिर भी न जाने क्यूँ,
ज़िन्दगी सिर्फ़ चाहती है, तुम्हारी
निगाहों में अपना पता
तलाश करना,
वो बूंदें !
जो कभी छलकी थीं पुरनम आँखों से -
तुम्हारे, उन्हीं बूंदों में आज तक
सिमटी सी है ज़िन्दगी
अपनी - -
* *
- शांतनु सान्याल
daisies
सुन्दर भाव की अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएं(नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
नई पोस्ट तुम
thanks a lot respected friend - - regards
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