इक अनबूझ पहेली है, ये रात
चाँद और सफ़र आसमां
का, ख़ामोश लब,
कह न सके
कुछ
भी, मुख़्तसर उम्र थी मेरी - -
दास्तां का, समेट लो
तुम भी दामन
वक़्त से
पहले,
ज़ामिन कुछ भी नहीं सितारों
के कारवां का, कहाँ
मिलती है यूँ भी
मुकम्मल
रौशनी,
अँधेरा है वाक़िफ़ दोस्त मुद्दतों
से मेरी ज़िन्दगी का !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
Chinese Bamboo Painting
चाँद और सफ़र आसमां
का, ख़ामोश लब,
कह न सके
कुछ
भी, मुख़्तसर उम्र थी मेरी - -
दास्तां का, समेट लो
तुम भी दामन
वक़्त से
पहले,
ज़ामिन कुछ भी नहीं सितारों
के कारवां का, कहाँ
मिलती है यूँ भी
मुकम्मल
रौशनी,
अँधेरा है वाक़िफ़ दोस्त मुद्दतों
से मेरी ज़िन्दगी का !
* *
- शांतनु सान्याल
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