बिखरने दे ज़रा और अंधेरे की स्याही,
इतनी भी बेक़रारी ठीक नहीं,
अभी तलक है लिपटी
सी सुनहरी शाम
की रेशमी
चादर,
बेताब नदी के लहरों को कुछ और - -
राहत तो मिले, डूबने दे तपते
हुए सूरज को और ज़रा,
अभी अभी, अहाते
के फूलों में है
कहीं
ख़ुश्बुओं की आहट, अभी अभी तुमने
देखा है मुझे, ख़ुद से चुरा कर
इत्तफ़ाक़न, थमने दे
ज़रा जुम्बिश ए
जज़बात,
जब
रात जाए भीग चाँदनी में मुक्कमल,
तब रखना मेरा वजूद अपनी
आँखों में उम्र भर के
लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
evening glow(1)
इतनी भी बेक़रारी ठीक नहीं,
अभी तलक है लिपटी
सी सुनहरी शाम
की रेशमी
चादर,
बेताब नदी के लहरों को कुछ और - -
राहत तो मिले, डूबने दे तपते
हुए सूरज को और ज़रा,
अभी अभी, अहाते
के फूलों में है
कहीं
ख़ुश्बुओं की आहट, अभी अभी तुमने
देखा है मुझे, ख़ुद से चुरा कर
इत्तफ़ाक़न, थमने दे
ज़रा जुम्बिश ए
जज़बात,
जब
रात जाए भीग चाँदनी में मुक्कमल,
तब रखना मेरा वजूद अपनी
आँखों में उम्र भर के
लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
evening glow(1)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (01-112-2013) को "निर्विकार होना ही पड़ता है" (चर्चा मंचःअंक 1448)
पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
thanks a lot respected friend - - regards
जवाब देंहटाएं