कहीं न कहीं आज भी उसके दिल में
है अफ़सोस ज़रा, वो चाह कर
भी मुझसे जुदा हो न
सका, कहीं न
कहीं मैं
भी भीड़ में तन्हा ही रहा, चाह कर
भी किसी से जुड़ न सका,
इक अजीब सा रहा
यूँ सिलसिला
दरमियां
अपने, मुझसे ताउम्र बुतपरस्तिश
न गई, और वो पत्थर से
निकल कभी ख़ुदा
हो न सका,
इक -
तरसीम ए ख्बाब या इश्क़ हक़ीक़ी,
न जाने क्या थी उसकी
तिलस्मी चाहत,
लाख चाहा
मगर
उस मरमोज़ आतिश ए दायरा के
बाहर कभी निकल ही न
सका - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
forget me not - -
है अफ़सोस ज़रा, वो चाह कर
भी मुझसे जुदा हो न
सका, कहीं न
कहीं मैं
भी भीड़ में तन्हा ही रहा, चाह कर
भी किसी से जुड़ न सका,
इक अजीब सा रहा
यूँ सिलसिला
दरमियां
अपने, मुझसे ताउम्र बुतपरस्तिश
न गई, और वो पत्थर से
निकल कभी ख़ुदा
हो न सका,
इक -
तरसीम ए ख्बाब या इश्क़ हक़ीक़ी,
न जाने क्या थी उसकी
तिलस्मी चाहत,
लाख चाहा
मगर
उस मरमोज़ आतिश ए दायरा के
बाहर कभी निकल ही न
सका - -
* *
- शांतनु सान्याल
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