28 नवंबर, 2013

तुम चाहो तो समेट लो - -

रहने दे मुझे यूँ ही बेतरतीब, बिखरा बिखरा,
हर चीज़ अगर मिल जाए हाथ बढ़ाए,
तो अधूरा सा है ज़िन्दगी का 
मज़ा, न कर उम्मीद 
से बढ़ कर कोई 
ख्वाहिश !
दुनिया की नज़र में पैबंद के मानी जो भी हों, 
लेकिन मेरे लिए है वो कोई शफ़ाफ़ 
आईना, रखता है जो अक्स 
मेरा मुक़रर हर दम,
कि लौट आता 
हूँ मैं वहीँ 
जहाँ से आग़ाज़ ए सफ़र था मेरा, और यही 
वजह है जो मुझे फ़िसलने नहीं देता,
बड़ी राहत ओ चैन से मैं घूम 
आता हूँ शीशे के राहों 
पे चलके तनहा,
चांदनी 
तुम चाहो तो समेट लो अपने दामन में पूरा,
मेरे दिल में है अभी तक रौशनी काफ़ी !
 * * 
- शांतनु सान्याल  

http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by georgia

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past