मालूम है मुझको शीशे की मजबूरी
फिर भी दिल चाहे ख़्वाबों से
खेलना, न छीनो मुझसे -
ये खिलौना, बहोत
मुख़्तसर है -
रात की ज़िन्दगानी, न दोहराओ -- -
वही रंज ओ ग़म की बातें,
नई पुरानी दर्द भरी
अलहदगी,
जंग आलूद धुंधली मुलाक़ातें, अब -
इन बातों से ऊबती है ज़िंदगी,
कुछ नयापन चाहे दिल
मेरा, जिसमें हो
इक मुश्त
ताज़गी, इक अहसास ए ख़ुशबू -- -
जो कर जाए तिलिस्म गहरा,
कि जिस्म ओ रूह
चाहे राहत
ज़रा - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by Melanie Pruitt 1
फिर भी दिल चाहे ख़्वाबों से
खेलना, न छीनो मुझसे -
ये खिलौना, बहोत
मुख़्तसर है -
रात की ज़िन्दगानी, न दोहराओ -- -
वही रंज ओ ग़म की बातें,
नई पुरानी दर्द भरी
अलहदगी,
जंग आलूद धुंधली मुलाक़ातें, अब -
इन बातों से ऊबती है ज़िंदगी,
कुछ नयापन चाहे दिल
मेरा, जिसमें हो
इक मुश्त
ताज़गी, इक अहसास ए ख़ुशबू -- -
जो कर जाए तिलिस्म गहरा,
कि जिस्म ओ रूह
चाहे राहत
ज़रा - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by Melanie Pruitt 1
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
सुंदर भावपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
thanks all respected friends - - love and regards
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