तुम जाओ कहीं भी, आसां नहीं रिहाई ए -
वाबस्तगी, लौट आओगे दिल के
क़रीब इक दिन, बहोत
मुश्किल है दोबारा
कहीं दिल
लगाना, ये वो हक़ीक़त है जो जां से गुज़र
जाए, अहसास नाज़ुक लेकिन, जो
दिलकी परतों पे दे जाए
अंतहीन निशां !
बहोत
मुश्किल होगी ज़ख़्मी जिगर छुपाना, वो
जो हमारे दरमियां थी मसावात ए
ज़िन्दगी, सांस टूट जाए
मगर उसका टूटना
है नामुमकिन,
नहीं -
आसां ये हमनफ़स, नाबूद चमन को फिर
बसाना, बहोत मुश्किल है दोबारा
कहीं दिल लगाना - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by sharon forthofer
वाबस्तगी, लौट आओगे दिल के
क़रीब इक दिन, बहोत
मुश्किल है दोबारा
कहीं दिल
लगाना, ये वो हक़ीक़त है जो जां से गुज़र
जाए, अहसास नाज़ुक लेकिन, जो
दिलकी परतों पे दे जाए
अंतहीन निशां !
बहोत
मुश्किल होगी ज़ख़्मी जिगर छुपाना, वो
जो हमारे दरमियां थी मसावात ए
ज़िन्दगी, सांस टूट जाए
मगर उसका टूटना
है नामुमकिन,
नहीं -
आसां ये हमनफ़स, नाबूद चमन को फिर
बसाना, बहोत मुश्किल है दोबारा
कहीं दिल लगाना - -
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- शांतनु सान्याल
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