न रख कोई उम्मीद मुझसे ये ज़माना
कि इश्क़ में, मैंने पा लिया है
चाहत से कहीं ज़्यादा,
अब दिल में
कोई
ख़्वाहिश बाक़ी नहीं, तखैल से परे है,
वो अहसास ए इत्मीनान, अब
क्या ज़हर, या नोश अमृत,
हर चीज़ है बेअसर,
मैं तमाम उन
ख़ुमारी
से निकल बहोत दूर जा चुका हूँ, जहाँ
रूहें मिलती हैं इक दूसरे से यूँ
गोया कोई अज़ीम दरिया
समा जाए ख़ामोश
समंदर के
सीने
में, अंतहीन गहराइयों की जानिब - -
न कोई पता, न ही कोई नाम
ओ निशां, मुकम्मल
फ़िदाकारी !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
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कि इश्क़ में, मैंने पा लिया है
चाहत से कहीं ज़्यादा,
अब दिल में
कोई
ख़्वाहिश बाक़ी नहीं, तखैल से परे है,
वो अहसास ए इत्मीनान, अब
क्या ज़हर, या नोश अमृत,
हर चीज़ है बेअसर,
मैं तमाम उन
ख़ुमारी
से निकल बहोत दूर जा चुका हूँ, जहाँ
रूहें मिलती हैं इक दूसरे से यूँ
गोया कोई अज़ीम दरिया
समा जाए ख़ामोश
समंदर के
सीने
में, अंतहीन गहराइयों की जानिब - -
न कोई पता, न ही कोई नाम
ओ निशां, मुकम्मल
फ़िदाकारी !
* *
- शांतनु सान्याल
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