रात गहराते ही कोलाहल को विराम मिला, ऊंघता अंध गायक, अर्धसुप्त सारमेय,
जन शून्य रेल्वे प्लेटफार्म, अंतहीन
नीरवता का साम्राज्य, ज़िन्दगी
को चंद घड़ियों का आराम
मिला, रात गहराते ही
कोलाहल को
विराम
मिला ।
उभर चले हैं सितारों के अनगिनत कारवां,
हिसाब कोई नहीं रखता नक्षत्र के टूट
कर बिखरने का, निशि पुष्पों को
है हर हाल में गिरना धरा की
धूल में, कुछ स्मृति सुरभि
रह जायेंगे सृष्टि के
कैनवास में,
हर एक
को
निभानी है अपनी अपनी भूमिका, सब
नियति के हाथों है नियंत्रित, व्यर्थ
है सोचना किस को कितना
ईनाम मिला, रात गहराते
ही कोलाहल को
विराम मिला ।
- - शांतनु सान्याल
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 24 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
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