सीमांत के उस पार है बच्चे का पिता इस पार आंसू बहाती माँ, दर्द
तेरा - मेरा काश धर्म नहीं
पूछता, तुम्हारा ख़ुदा
है महान तो मेरा
भी सृष्टिकर्ता
है शक्तिमान,
ख़ून की
होली
खेलने की चाहत में कहीं तेरा अस्तित्व
न बन जाए मशान, जो नफ़रत की
बुनियाद पर करना चाहे सारे
ब्रह्माण्ड में राज, उसका
भी एक दिन होता
है आवारा
श्वान
रूपी अवसान, अंतर्निहित शत्रु का पता
करना होता है कठिन, दीमक की
तरह जो कर जाते हैं मानचित्र
को खोखला, बाहर के
दुश्मन को फ़तह
करना है बहुत
आसान,
अब
उठो भी गहरी नींद से जाग कि माँ भारती
का रक्तरंजित देह तुम्हें दर्द से है
पुकारता, देश के ख़ातिर
देना है अपने प्राणों
का बलिदान ।
- - शांतनु सान्याल
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