18 अप्रैल, 2025

अनुयायी - -

सुरभित स्वप्नशय्या में हूँ लीन, सहस्त्र फूल हैं

सिरहाने, ये और बात है कि ख़ाली जेब
ढूंढते हैं जीने के बहाने, अहाते का
उम्रदराज़ नीम तकता है मुझे
बड़ी हैरत से, आख़िर
क्या है उसके
दिल में
वही
जाने, सुरभित स्वप्नशय्या में हूँ लीन, सहस्त्र
फूल हैं सिरहाने । हमसफ़र मेरी कहती
है रिश्तों की डोर ताने रक्खो, घुट्टी
में उसने सीखा है वृश्चिक
मातृत्व का मंत्र,
निःस्व हो
जाने
का
सुख, मैं भी चल पड़ता हूँ उसी पथ में एक
अनुयायी बन अपना दायित्व निभाने,
सुरभित स्वप्नशय्या में हूँ लीन,
सहस्त्र फूल हैं सिरहाने ।
- - शांतनु सान्याल 

1 टिप्पणी:

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past