17 अप्रैल, 2025

निवृत्त भूमिका - -

रिश्तों के रंग बिरंगे लिफ़ाफ़े अक्सर

खोल कर देखता हूँ गोखुर झील,
टीले, घाटी सब हैं पूरी तरह
से सैलाब में डूबे हुए,
मृत किनारों को
मिल जाते
हैं नए
वारिसदार, मानचित्र के किसी एक
अस्पष्ट बिंदु पर विस्मृत पड़ा
रहता है खंडहरनुमा दिल
का डाकघर, ऊसर
भूमि के रास्ते
कोई नहीं
चलता
दूर
तक, बाँसवन में है अभी तक मौजूद
आदिम कुछ दीवार, मृत किनारों
को मिल जाते हैं नए
वारिसदार । कौन
संभाले रखता
है पुराने
ख़त,
बेवजह जो जगह घेरते हों, लोग बड़ी
सहजता से फाड़ कर फेंक देते हैं
शब्द बंधन, दूर ध्वनि से भी
कर जाते हैं किनाराकशी,
बहुत आसान है कहना
रॉन्ग नम्बर ! क्या
फ़र्क़ पड़ता है
तुम्हारे
होने
या
न होने से, तुम निभा चुके हो अपना
किरदार, मृत किनारों को मिल
जाते हैं नए वारिसदार ।
- - शांतनु सान्याल


3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सर।
    सादर।
    आपके द्वारा निसृत भावों की निर्झरी की निरंतरता सराहनीय है सर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ अप्रैल २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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