19 मार्च, 2025

आहत प्रहरी - -

गली के उस पार से उठा बवंडर दूर तक

धुआं फैला गया, बिखरे पड़े हैं हर
तरफ पत्थरों के टुकड़े, और
आदिमयुगीन बर्बरता के
निशान, चेहरे में भय,
आतंक के साए,
टूटे हुए मंदिर
के कपाट,
शहर
की हवाओं में जाने कौन ज़हर बिखरा
गया, गली के उस पार से उठा
बवंडर दूर तक धुआं फैला
गया । कल शाम शहर
में था भेड़ियों का
अप्रत्याशित
आक्रमण,
सांध्य
पूजा
के पहले मृत्यु का आमंत्रण, प्रहरी भी
थे बेपरवाह अपने आप में निमग्न,
हिंस्र पशु नोचते रहे निरीह
मानव अंग, कुछ देर यूँ
लगा हम आज भी
जी रहे हैं मध्य
प्रस्तर युग
में कहीं,
मुद्दतों से शांत धरातल को सहसा कोई
दहला गया, गली के उस पार से
उठा बवंडर दूर तक धुआं
फैला गया । हर कोई
सोचने को है
मजबूर
कि
वन्य पशुओं से ख़ुद को कैसे बचाया
जाए, बस इसी एक बिंदु पर
गुज़रा हुआ कल अंदर
तक अदृश्य अनल
सुलगा गया,
गली के
उस पार से उठा बवंडर दूर तक धुआं
फैला गया - -
- - शांतनु सान्याल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past