10 जुलाई, 2025

शब्दों के उस पार - -

अंधकारमयी नदी ढूंढती है

जुन्हाई भरा किनारा,
अंतःस्थल के गहन
में रहता है
अंतहीन
उजियारा ।

मृग और मृगया के दरमियां
है बचे रहने का संघर्ष,
निर्बल की मृत्यु है
तय बाकी
भानुमति
का पिटारा ।

ख़्वाबों का फेरीवाला बेच
जाता है रंगीन बुलबुले,
शून्य हथेलियों में
रह जाता है
मृत आदिम
सितारा ।

हर सुबह देखता हूँ मैं दिगंत
के बदलते हुए रंग को
हर मोड़ पे वही
मदारी जमूरे
वाले खेल
का
नज़ारा ।

खड़ा हूँ अंतिम छोर में लिए
वजूद का प्रमाण पत्र
बिखरे पड़े हैं
मुखौटे उठ
चुका
मीना बाज़ार
सारा ।
- - शांतनु सान्याल












3 टिप्‍पणियां:

  1. गहन भाव लिए अर्थ पूर्ण अभिव्यक्ति सर।
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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  2. गहन भाव लिए अर्थ पूर्ण अभिव्यक्ति सर।
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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