अंधकारमयी नदी ढूंढती है जुन्हाई भरा किनारा,
अंतःस्थल के गहन
में रहता है
अंतहीन
उजियारा ।
मृग और मृगया के दरमियां
है बचे रहने का संघर्ष,
निर्बल की मृत्यु है
तय बाकी
भानुमति
का पिटारा ।
ख़्वाबों का फेरीवाला बेच
जाता है रंगीन बुलबुले,
शून्य हथेलियों में
रह जाता है
मृत आदिम
सितारा ।
हर सुबह देखता हूँ मैं दिगंत
के बदलते हुए रंग को
हर मोड़ पे वही
मदारी जमूरे
वाले खेल
का
नज़ारा ।
खड़ा हूँ अंतिम छोर में लिए
वजूद का प्रमाण पत्र
बिखरे पड़े हैं
मुखौटे उठ
चुका
मीना बाज़ार
सारा ।
- - शांतनु सान्याल
सुन्दर
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए अर्थ पूर्ण अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
-------
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
गहन भाव लिए अर्थ पूर्ण अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
-------
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।