अमर शब्दांश अधूरा था प्रेम प्रत्यय जुड़ने से पहले, हज़ार बार मुड़ के देखा किए
गुलमोहरी राह में दूर तक, कहीं
कोई न था अपने साया के
सिवा ख़ुद की तलाश
में निकलने से
पहले, कुछ
भी नहीं
है यहाँ चिरस्थायी, फिर भी हम बुनते हैं
नित नए सपनों के शीशमहल, कितने
अभिलाषों का कोई अभिलेख
नहीं होता, फिर भी हम
लिखते हैं रेत पर
उम्मीद भरी
कविता
सब कुछ बिखरने से पहले, अमर शब्दांश
अधूरा था प्रेम प्रत्यय जुड़ने से पहले ।
इस बात की ख़बर है हम को
अच्छी तरह कि एक दिन
पहुँचना है निःशब्द
नदी किनारे,
अभी से
क्यूं
खोजें प्रस्थान पथ, अभी कुछ दूर और
है चलना हमें बाँह थामे तुम्हारे,
बहुत कुछ देखना समझना
है बाक़ी, कोई अफ़सोस
न रहे दिल में मरने
से पहले, अमर
शब्दांश
अधूरा था प्रेम प्रत्यय जुड़ने से पहले ।
- - शांतनु सान्याल
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