एक जटिल जाल में गुथा हुआ ये शरीर चाहता है मुक्त होना किसी मसृण
स्पर्श से, जीवन का सौंदर्य
छुपा रहता है अदृश्य
उष्ण श्वास के
छुअन में,
कांच
के शोकेस में सज्जित पुस्तकों में नहीं
मिलेगी आत्म सुख की परिभाषा,
कुछ एहसास निर्जीव से पड़े
रहते हैं अंधकार पृष्ठों के
अंदर शापित
जीवाश्म
की
तरह, मुक्ति पथ के दोनों दरवाज़ों में
होते हैं अंकित अबूझ प्रेम के
इतिकथा, जिसे सिर्फ़
वही पढ़ सकता है
जिसे ज्ञात हो
दृग भाषा,
अतल
में
उतर कर जो ढूंढ लाए अमर प्रणय
मणि, उसे ही मिलता है अनंत
सुख जीवन दहन में, जीवन
का सौंदर्य छुपा रहता है
अदृश्य उष्ण श्वास
के छुअन में ।
- - शांतनु सान्याल
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