एक जटिल जाल में गुथा हुआ ये शरीर चाहता है मुक्त होना किसी मसृण
स्पर्श से, जीवन का सौंदर्य
छुपा रहता है अदृश्य
उष्ण श्वास के
छुअन में,
कांच
के शोकेस में सज्जित पुस्तकों में नहीं
मिलेगी आत्म सुख की परिभाषा,
कुछ एहसास निर्जीव से पड़े
रहते हैं अंधकार पृष्ठों के
अंदर शापित
जीवाश्म
की
तरह, मुक्ति पथ के दोनों दरवाज़ों में
होते हैं अंकित अबूझ प्रेम के
इतिकथा, जिसे सिर्फ़
वही पढ़ सकता है
जिसे ज्ञात हो
दृग भाषा,
अतल
में
उतर कर जो ढूंढ लाए अमर प्रणय
मणि, उसे ही मिलता है अनंत
सुख जीवन दहन में, जीवन
का सौंदर्य छुपा रहता है
अदृश्य उष्ण श्वास
के छुअन में ।
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 17 जुलाई 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन, कबीर दास ने भी कहा है न, मोको कहाँ ढूँढे रे बंदे, मैं सांसन की सांस में
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं