जिस जगह में कभी हमने उजाले की बात की थी उस जगह नदी अंधेरे
में तलाशती है स्मृति मशाल,
वो बूढ़ा बरगद आज भी
है मौजूद कुछ झुका
हुआ कांधे पर
थामे हुए
सारे
जहां का दर्द, खड़ा है अपनी जगह
यथावत, उसकी उलझी जटाएं
कभी थकती नहीं, निरंतर
खोजती हैं सिक्त भूमि,
सब कुछ लुटा कर
भी वो होता नहीं
कंगाल, उस
जगह नदी
अंधेरे
में तलाशती है स्मृति मशाल । जिस
जगह हमने मिल कर लिया था
अग्निस्नान का शपथ उस
जगह आज भग्न
देवालय के
सिवा
कुछ नहीं बाक़ी, बिखरे हुए ईंट पत्थरों
में गुम हैं शिलालेख के वर्णमाला,
उन का मर्म सिर्फ़ नदी जानती
है, उस ने बड़े नज़दीक से
देखा है विपप्लवी
मशालों की
लौ को,
नदी
सब सुनती है, परेशान हो कर देखती
है बढ़ते हुए कंक्रीट के जंगल को,
कल क्या होगा कहना आसान
नहीं, रौद्र रूप डूबा भी
सकता है सारे शहर
को, वैसे अभी
तो शांति है
बहरहाल,
उस
जगह नदी अंधेरे में तलाशती है स्मृति
मशाल ।
- - शांतनु सान्याल
गहन वेदना
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