सभी नदियां सागर में अंततः जाती हैं मिल, दिनांत में सभी पंछी लौट आते हैं अपने
घर, सुबह और शाम का चक्र कभी
रुकता नहीं, गतिशील रंगमंच
में वक़्त के साथ अदाकार
बदल जाते हैं, नए
परिवेश में नई
भूमिका,
जीवन के सफ़र में अंतहीन होते हैं मंज़िल,
सभी नदियां सागर में अंततः जाती
हैं मिल । दूरगामी रेल के सह
यात्री की तरह लोग मिल
कर खो जाते हैं दुनिया
की भीड़ में, यादें
टेलीफोन के
तार में
परिंदों की तरह झूलते से नज़र आते हैं,
गुज़रे पल तेज़ी से पीछे छूट जाते हैं
खेत खलियान, बबूल खजूर के
पेड़, पहाड़ी नदी, पुल, सब
कुछ जो हमारे आसपास
थे क्रमशः हो जाते हैं
धूमिल, सभी
नदियां
सागर में अंततः जाती हैं मिल । एहसास
फिर भी बना रहता है अरण्य फूल
की ख़ुश्बू की तरह अंदर तक,
न जाने क्या खिंचाव है जो
हर हाल में लौटा लाता
है हमें अपनी धुरी
में, उस चार
दिवारी से
जैसे
हम वचनबद्ध हों जीने मरने के लिए हमारा
सामयिक सन्यास टूट जाता है अपने
आप, इस पराजय में ही रहता है
उम्र भर का हासिल, सभी
नदियां सागर में अंततः
जाती हैं मिल ।
- - शांतनु सान्याल
सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
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