25 नवंबर, 2020

ऐतिहासिक चरित्र - -

इस शीतकाल के मदिर रात में
न जाने कितने दृश्यों के
नागपाश खुल के
पुनः बिखरते  
रहे, प्रस्तर
युगों
से ले कर आज तक इस पृथ्वी
के सीने में, न जाने कितने
हलचल उभरे, कितने
अग्नि पर्वतों ने
जन्म
लिया, कितने मोहपाश जलते
बुझते रहे, आज भी उन्हीं
दृश्यों की होती है
पुनरावृत्ति,
वही
अदृश्य आदिम गुफाओं के - -
शैल चित्रों से उतरते हैं
हिंस्र परछाइयां,
करते हैं
नगर
भ्रमण, महापुरुषों की उक्तियाँ
उभरी हुई हैं, हर एक मोड़
पर, उसी पुरातन
कोलाहल में
दब कर
कहीं
रह
जाती हैं अनजानी चीखों की -
गहराइयां, आख़री पहर पड़े
रहते हैं, बंद कमरों में
निष्प्राण से कुछ
चाँदनी के
क़तरे,
कुछ
ज़बरन बुझाए गए सिगरेट के
टुकड़े, कुछ कांच चुभे
रक्तिम पांवों के
अपरिचित
निशान,
लौट
जाती है ठहरी हुई बर्बर लहरों
की आदिम सेना, भोर में
अब सभी चेहरे हैं
ओस में धुले
तुलसी
पत्र,
अब हैं वो सभी हमारी संस्कृति
के अविभावक, ऐतिहासिक
हैं निःसंदेह, शैल चित्रों
के सभी चरित्र - -

* *
- - शांतनु सान्याल

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