इस शीतकाल के मदिर रात में
न जाने कितने दृश्यों के
नागपाश खुल के
पुनः बिखरते
रहे, प्रस्तर
युगों
से ले कर आज तक इस पृथ्वी
के सीने में, न जाने कितने
हलचल उभरे, कितने
अग्नि पर्वतों ने
जन्म
लिया, कितने मोहपाश जलते
बुझते रहे, आज भी उन्हीं
दृश्यों की होती है
पुनरावृत्ति,
वही
अदृश्य आदिम गुफाओं के - -
शैल चित्रों से उतरते हैं
हिंस्र परछाइयां,
करते हैं
नगर
भ्रमण, महापुरुषों की उक्तियाँ
उभरी हुई हैं, हर एक मोड़
पर, उसी पुरातन
कोलाहल में
दब कर
कहीं
रह
जाती हैं अनजानी चीखों की -
गहराइयां, आख़री पहर पड़े
रहते हैं, बंद कमरों में
निष्प्राण से कुछ
चाँदनी के
क़तरे,
कुछ
ज़बरन बुझाए गए सिगरेट के
टुकड़े, कुछ कांच चुभे
रक्तिम पांवों के
अपरिचित
निशान,
लौट
जाती है ठहरी हुई बर्बर लहरों
की आदिम सेना, भोर में
अब सभी चेहरे हैं
ओस में धुले
तुलसी
पत्र,
अब हैं वो सभी हमारी संस्कृति
के अविभावक, ऐतिहासिक
हैं निःसंदेह, शैल चित्रों
के सभी चरित्र - -
* *
- - शांतनु सान्याल
25 नवंबर, 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
सुन्दर
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएं