29 नवंबर, 2020

अपना अपना दृष्टिकोण - -

समय जहाँ हो जाए स्तब्ध, स्रोतहीन
स्मृतियाँ बन जाती हैं इतिहास,
स्वप्न देखना ज़रूरी है
जीवित रहने का
सिर्फ़ यही
है एक
मात्र आभास।  कुछ अतीत को भूल
कर, नए अंदाज़ लिए ख़्वाब
देखते हैं, सत्य, मिथ्या
और अभिनय के
त्रिकोण में
कहीं
हम जीवन का उलझा हुआ हिसाब
देखते हैं। दिन बदलते हैं, रातें
भी सरक जाती हैं, उजालों
की ओर, कंबलों के
आवरण ढक
कर लिए
जाते
हैं
न जाने कितने मासूम चेहरों को,
ख़्वाब बेचने वालों की ओर।
रंगीन रौशनी है हर
तरफ़, पसरा
हुआ है
दूर
तक मीनाबाज़ार, हर एक चीज़ है  
उपलब्ध यहाँ, सिवा एक के
जिसे ख़रीदा नहीं जा
सकता, वो मिल
जाता है भाग्य
से और खो
जाए तो
उम्र
भर उसकी क़ीमत चुकानी होती है,
मानों तो बहुत कुछ है, तुम्हारे
आंचल में, और न मानों
अगर, तो पानी का
बुलबुला है, ये
संसार।

* *
- - शांतनु सान्याल
 


9 टिप्‍पणियां:

  1. उत्कृष्ट रचना, हमेशा की तरह। एक व्यापक दृष्टिकोण समेटे।
    साधुवाद आदरणीय। शान्तनु जी ।।।

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  2. बहुत सुंदर सृजन। हमेशा की तरह बहुत बढ़िया..!

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