घूमती हुई पृथ्वी, और टूटे हुए तारे
का मिलना, अपनी जगह में
लिख जाता है, न जाने
कितने झुलसते
हुए सुखों
की
कहानियां, आज भी मेरे सीने में हैं
टूटे हुए इंद्रधनुष के सात रंग,
ये कभी सूखते नहीं,
बल्कि रात
गहराते
ही,
उकेरते हैं, नित नए ज़िन्दगी के -
ख़ूबसूरत ख़्वाब, नयन तटों
के आसपास, उम्र बढ़ा
जाते हैं तुम्हारे
रहस्यमय -
प्रणय
की
परछाइयां, दस्तकों का राज़ रहे
बंद, गुज़रे हुए लम्हात की
तिजोरी में, चाबियाँ
उसने फेंख दी है
कोहरे में डूबी
हुईं गहरी
घाटियों
में,
कभी कभी दिल को छू जाती हैं -
वक़्त की, मंत्र मुग्ध करतीं
ये जल बिंदुओं की तरह
खेलतीं उछलतीं
नादानियां।
* *
- - शांतनु सान्याल
30 नवंबर, 2020
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सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंगुरु नानक देव जयन्ती
और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
तहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह बेहतरीन...!
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंपरछाइयां, दस्तकों का राज़ रहे
जवाब देंहटाएंबंद, गुज़रे हुए लम्हात की
तिजोरी में, चाबियाँ
उसने फेंख दी है
कोहरे में डूबी
हुईं गहरी
घाटियों
में,..वाह !बहुत ही सुंदर सृजन।
तहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
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