04 नवंबर, 2020

अज्ञात यात्रा - -

उम्मीद से अधिक मिल जाए तो
जीने का मज़ा नहीं रहता,
अधूरापन ही ज़िन्दगी
को ले जाता है नए
आयामों की
ओर,
उजालों को रहने दो दिगंत के उस
पार, सिर्फ़ स्पर्श से करें बातें,
अंधेरे में अथाह गहराई
का पता नहीं रहता,
इन सांद्र पलों
में कहीं
है वो
गन्धकोष की परिधि, मधु रात
के सीने में हैं अनगिनत
रहस्य ग्रंथि, परतों
के ऊपर ख़ुश्बू
का गंतव्य
लिखा
नहीं
रहता, यूँ तो तुम्हारी रूह को - -
छूने के लिए इक उम्र काफ़ी
नहीं, फिर भी ये पल
कई शताब्दियों
से कम नहीं,
समेट लो
अपने
दामन में कुछ शबनमी अहसास
की बूंदे, ये मोती हर एक रात
में यूँ ही बिखरा नहीं रहता,
उम्मीद से अधिक मिल
जाए तो जीने का
मज़ा नहीं
रहता।

* *
- - शांतनु सान्याल
 

 

5 टिप्‍पणियां:

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past