13 नवंबर, 2020

अतीत के पृष्ठ - -

जब आईना देखने की उम्र थी, तब  
हम ख़ुद को सजा ही न सके,
वही मध्यमवर्गीय दृष्टि -
कोण, लोग क्या कहेंगे,
छुप के यूँ ही देखते
रहे वसंत को
पतझर में
ढल
जाते हुए, बहुत कुछ था हमारे दिल
में, खुल के तुम्हें कभी बता ही
न सके, ख़ुद को जी भर के
सजा ही न सके, वो
ख़ामोशी, जो
लिखता
रहा
अंतर्मन की पृष्ठों में, अप्रकाशित -
अनुभूति, सीने में कहीं जमती
रहीं बूंद बूंद किसी अदृश्य
दिव्यता की स्तुति,
उस अलौकिक
रोमांच की
छवि
हम चाह कर भी तुम्हें दिखा न सके,
बहुत कुछ था हमारे दिल में,
खुल के तुम्हें कभी बता
ही न सके, मुड़ के
देखा है, तुम्हें
कई बार
दूर
तक, बहते हुए से लगे सभी शब्दों -
के भीड़, भीगते रहे सभी अप्रेषित
पत्र, अतीत के सीढ़ियों में,
भीगता रहा पलकों
का गाँव, फिर
भी देह और
प्राण सूखे
रहे,
हमने चाहा कि मुस्कुराएं दिल की -
गहराइयों से, लेकिन चाह कर
भी हम उन्मुक्त मुस्कुरा
न सके, सब कुछ
भुला कर
बहुत
कुछ भुला ही न सके, हम ख़ुद को
जी भर के कभी सजा -
ही न सके  - -

* *
- - शांतनु सान्याल

 
 

13 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. दीपावली की असंख्य शुभकामनाएं, हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  2. बहुत सुंदर। लाजवाब।
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🌻

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  3. जब आईना देखने की उम्र थी, तब
    हम ख़ुद को सजा ही न सके,
    वही मध्यमवर्गीय दृष्टि -
    कोण, लोग क्या कहेंगे,
    छुप के यूँ ही देखते
    रहे वसंत को
    पतझर में
    ढल
    जाते। यथार्थ को प्रस्तुत करती कविता बहुत सुंदर

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    उत्तर
    1. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं । हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  4. शुभ हो दीपोत्सव सभी के लिये मंगलकामनाएं।

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  5. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं । हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  6. सुन्दर सृजन
    दीपोत्सव की असीम शुभकामनाएँ

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    उत्तर
    1. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं । हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  7. अंतर्मन के पृष्ठों में,अप्रकाशित अनुभूति..बहुत ख़ूब कहा आपने..सुंदर रचना ..।

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    उत्तर
    1. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं । हार्दिक आभार - - नमन सह।

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