15 नवंबर, 2020

उन्वान से ऊपर - -

गुमसुम सा है दीपक स्तम्भ, न जाने
कितने क़ुर्बान हुए, कल रात, इक
बूंद उजाले के लिए, यूँ तो
हर दर था चिराग़ों से
रौशन, फिर भी
वो मिलना
चाहता
था
सिर्फ़ मुझ से, दाग़े दिल दिखाने के  
लिए, वो सारी रात सुनसान
राहों में भटकता रहा
तनहा, मिट्टी
के  दीयों
की,
उम्र थी मुख़्तसर, वो ज़िंदा थे सिर्फ़
रौशनी लुटाने के लिए, बिखरे
पड़े हैं, राज पथ के दोनों
किनारे अनगिनत
ख़्वाबों के
पंख,
कोई नहीं मौजूद दूर तक उनकी - -
अंतिम इच्छा बताने के लिए,
आतिशबाजी की शोर में
कहीं गुम हो गए वो
सभी हासिए
के लोग,
तुम
हमेशा की तरह रहे विशाल शीर्षक
में काबिज़, कोई तो हो तुम्हें  
असलियत दिखाने के
लिए - -

* *
- - शांतनु सान्याल

10 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को ।
      हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 16 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को ।
      हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  3. उत्तर
    1. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को ।
      हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  4. उत्तर
    1. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को ।
      हार्दिक आभार - - नमन सह।

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    2. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को ।
      हार्दिक आभार - - नमन सह।

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