22 नवंबर, 2020

न बदलो मौलिकता - -

मुझे मेरी तरह रहने दो, न जोड़ो न
ही घटाओ, अधिक काट-छाँट
से ज़िन्दगी का नक़्शा
बिखर जाएगा,
मेरे हृदय
का
शहर है कांच से गढ़ा हुआ इसका -
कोई नगरप्राचीर नहीं क्योंकि
इसे किसी बहिः शत्रु का
डर नहीं, जो ज़ख्म
देखते हो मेरे
अस्तित्व
पर
वो केवल दैहिक हैं दो चार दिनों में
भर जाएगा, अधिक काट-छाँट
से ज़िन्दगी का नक़्शा
बिखर जाएगा।
मैं इस सभा
में नया
ज़रूर
हूँ, लेकिन अनजान नहीं, वक़्त ने
मुझे आज़माया है ज़िन्दगी -
भर, मेरे आसपास जो
अंधेरे का है जल -
प्लावन, ये
सभी हैं
विगत रातों के घनीभूत मेघ दल,
सूर्यास्त से पहले ये उफान
अपने आप यूँ ही उतर
जाएगा, अधिक
काट-छाँट से
ज़िन्दगी
का
नक़्शा बिखर जाएगा, वो चीज़ जो
इच्छा के विरुद्ध हो उसे रोका
जा सकता है कुछ लम्हों
के लिए, दीर्घस्थायी
बनाने की चाह
में सहज
नहीं
उसे रोकना, वो कोई पिघलता हुआ
चट्टान है न जाने किधर
जाएगा - -

* *
- - शांतनु सान्याल 

8 टिप्‍पणियां:

  1. वो चीज़ जो
    इच्छा के विरुद्ध हो उसे रोका
    जा सकता है कुछ लम्हों
    के लिए, दीर्घस्थायी
    बनाने की चाह
    में सहज
    नहीं
    उसे रोकना, वो कोई पिघलता हुआ
    चट्टान है न जाने किधर
    जाएगा - - बहुत सही कहा आपने..बिल्कुल सटीक..।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 24 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. अधिक काट-छाँट से
    ज़िन्दगी का
    नक़्शा बिखर जाएगा

    –सच्चाई...

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past