24 नवंबर, 2020

स्व - अनावरण - -

कोई किसी को बांध के नहीं रखता
बल्कि अपने साथ बांध के ले
जाता है, देह पड़ी रहती
है पृथ्वी पर और
प्राण करता
है नभ
पथ
का विचरण, निःश्वास की गहराई
में डूब जाते हैं, सभी आलोक
सेतु, ज़िन्दगी गिनती
है, अंधेरे में मील
के पत्थर,
अबूझ
प्रेम
भटकता है उम्र भर सीने में दबाए
अपठनीय विवरण, प्राण
करता है, नभ पथ
का विचरण।
ज़रा सा
छुअन
बिखरा जाएगा धूल, भीग जाएंगे
असमय, बेवजह आँखों के
उपकूल, मूक ही रहने
दो अतीत के सभी
दर्पण, प्राण
करता है
नभ
पथ का विचरण। कोई किसी को
नहीं चाहता भूलना, वक़्त
भूला देता है, कोई
नहीं चाहता
किसी
को
हराना, भाग्य छीन लेता है, वो
कौन था, क्यों टूट के गिरा,
किधर खो गया, सभी
को रहती है बड़ी
जिज्ञासा,
लेकिन
कोई
नहीं करता, टूटे हुए नक्षत्र का -
तर्पण,  प्राण करता है
आकाश पथ का
विचरण।
मेरे
अंदर है, कोई पुरातन खण्डहर -
बारह मास लड़ता है ख़ुद
से, टूटता है, पुनः
गढ़ता है नए
शिल्प,
कोई
देखे या न देखे, वो स्वयं करता
है अपनी सृजन का भव्य
अनावरण - -

* *
- - शांतनु सान्याल  

 
 


 

18 टिप्‍पणियां:

  1. गहन भावों से युक्त सुंदर रचना

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 24 नवंबर नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-11-2020) को   "कैसा जीवन जंजाल प्रिये"   (चर्चा अंक- 3896)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  4. भीग जाएंगे
    असमय, बेवजह आँखों के
    उपकूल, मूक ही रहने
    दो अतीत के सभी
    दर्पण, प्राण
    करता है
    नभ
    पथ का विचरण।....बहुत ख़ूब ।मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति..।

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  5. भावनाओं का उमड़ता सागर नमी शब्दों पर उतरी ...।
    बहुत ही सुंदर सृजन।

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