हो सके तो एक पत्र आज लिखना, सभी
खो जाते हैं, समय के स्रोत में, आदिम
नदी, जरा व्याधि, सुख दुःख
अपनी गहराइयों में ले
कर, मुहाने में कहीं
करती है पूर्ण
समर्पण,
पुनः
उन पहाड़ियों में होगी बरसात, फिर - -
अनाम फूलों की, कोहरे से होगी
इत्र में डूबी बात, तुम अभ्र
की बूंदों से, कुछ दिल
के राज़ लिखना,
हो सके तो
एक पत्र
आज
लिखना। हालांकि, मेरा कोई स्थायी
घर नहीं, चारों तरफ़ हैं उन्मुक्त
वातायन, केवल यायावर
मेघ जानते हैं, मेरा
ठिकाना, मेरी
दुनिया का
कोई
विमुग्ध दर नहीं, जो भिगो दे अंतर
के मरुप्रान्तर को, कुछ झरनों
की सजल आवाज़ लिखना,
हो सके, तो एक पत्र,
ज़रूर आज
लिखना।
हर
तरफ़ है यहाँ एक अजीब सी उदासी,
हर कोई जी रहा है तनहा, अपने
ही दायरे में, जो मृत सुरों
में भर जाए जीवंत
ताल छंद, ऐसा
कोई सांस
लेता,
मीठे लफ़्ज़ों में ढला, साज़ लिखना, -
हो सके तो सुरभित कोई पत्र
आज लिखना - -
* *
- - शांतनु सान्याल
26 नवंबर, 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएं