इस मिलन बिंदु से, बहुत दूर है समुद्र
का अन्तःस्थल, अभी हमें बहते
जाना है अनवरत, बहुत
कुछ आँखों से रहते
हैं ओझल,
किंतु
उनका अस्तित्व होता है अपनी जगह
यथावत। रात ढल चुकी है तो
क्या हुआ, उजालों ने ढक
दिया है, तारों का
पटल, अभी
तक बहुत
दूर है
समुद्र का अन्तःस्थल। समय वृत्त के
किसी एक बिंदु में, एक मुद्दत के
बाद हम मिले हैं, ज़रूरी है
रखना मध्य अपने,
थोड़ा सा शून्य -
स्थान, मुझे
उतरना
है
अगले फेरी घाट में, और तुम्हें जाना है,
शायद किसी अज्ञात स्थान, पृथ्वी
नहीं रूकती है कभी, अपने
अक्ष में, आवर्तन उसका
चरम धर्म है फिर
भी हम तुम,
मंदिर -
शिखर, नदी पहाड़, जंगल समुद्र, सीप
मोती, बहुलावन के वही शुक सारि,
सुख दुःख, सब कुछ अपनी
जगह हैं विद्यमान,
ज़रूरी है रखना
मध्य अपने,
थोड़ा सा
शून्य -
स्थान - -
* *
- - शांतनु सान्याल
15 नवंबर, 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार (१६-११-२०२०) को 'शुभ हो दीप पर्व उमंगों के सपने बने रहें भ्रम में ही सही'(चर्चा अंक- ३८८७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को ।
हटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
'ज़रूरी है
जवाब देंहटाएंरखना मध्य अपने,
थोड़ा सा शून्य -
स्थान..'
-बहुत ज़रूरी है.
दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को ।
हटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को ।
हटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
थोड़ा सा शून्य भी ज़रूरी है...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंथोड़ा सा शून्य स्थान में मानो गागर में सागर छिपा है।
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली।
हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएं